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Saturday, November 13, 2010

from my diary...

होश सँभालते ही यह ज्ञात हो गया था कि मेरे नानाजी एक स्वतंत्रता सेनानी थे.तब उम्र और समझ छोटी होने के कारण बस इतना ही समझ आता था की अंग्रेजों ने हमारे देश को २०० सालों से भी ज्यादा समय तक गुलाम बना कर रखा था जिसके विरोध में अनेकों स्वतंत्रता सैनानियों ने कई आन्दोलन किये और देश को आजाद करा लिया.मेरे नानाजी को सन १९३० और १९४२ सहित ३ बार जेल हुई.तब १-१ साल के कारावास के दौरान उन्हें यातनाओं के चरम का सामना करना पड़ा.बताते हैं कि उन्हें घोर जाड़ों में भी अपने दल के सदस्यों की जानकारी न देने के कारण बिना कपड़े पहनाये बर्फ की सिल्लियों पे लेटा कर इतना पीटा जाता था की चमड़ी उधड़ जाती थी.उनके नाखूनों और खाल के बीच पिन घुसेड़े जाते थे लेकिन मेरे नानाजी अपने देश हित में अपनी ज़बान नहीं खोलते थे.
जब में साढ़े ३ साल का था तभी मेरे नानाजी का देहांत हो गया मगर मेरे बाल मन पर उनकी ऐसी छवि अंकित हो चुकी थी कि मेरे लिए वे भारतीय क्रांति के सभी स्वतंत्रता सेनानियों के प्रतीक बन गए.मुझे भारत के हर क्रन्तिकारी से उतना ही लगाव हो गया जितना अपने नानाजी से.
समय के साथ मुझे पता चलने लगा कि इस आज़ादी के लिए तमाम लोग फंसी पर चढ़ गए थे या जिनके शरीरों को तोप के गोलों से चीथड़े-चीथड़े कर दिया गया था.
ये लोग कोई पागल नहीं थे.दरअसल आज़ादी हर प्राणी का जन्मसिद्ध अधिकार है लेकिन इसके साथ ही आर्थिक,धार्मिक,क्षेत्रीय व जातीय समानता भी सभी का हक़ है.और इसी समानता के अधिकार हेतु ये लोग संघर्ष कर रहे थे.
अँगरेज़ हमारे देश में व्यापार के बहाने से आये थे लेकिन उन्होंने हमारे व्यापार और शिक्षा को अपने स्वार्थ हेतु अपने तरीके से ढ़ाल कर हम पर थोप दिया और हम पर राज किया.नतीजतन हमारे देश कि पूरी व्यवस्था चरमरा गई.
अंग्रेजों के जाने के बाद की सरकारों ने भी अपनी स्वार्थपूर्ति को सर्वोपरि रखते हुए देश को भ्रष्टाचार,जातिवाद,क्षेत्रवाद आदि के मकडजाल में ऐसा फंसा दिया कि आज भी देश हर विभाग में इसका शिकार है और बनता जा रहा है.
हमारे देश कि स्थिति हाथी के दांतों जैसी है.मात्र १०% के लगभग ही लोगों कि आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर है कि वे सभी ऐशोआराम भोगते हुए देश के कायदे-क़ानून से जैसे चाहे खेलते हैं.बाकी ९०% लोगों कि तो कोई औकात ही नहीं है.मजदूर और किसान तो कबूतर खानों जैसे घरों में रहते हैं.उनकी पूरी ज़िन्दगी भोजन की व्यवस्था में ही निकल जाती है.
रही बात मध्यम वर्ग की तो वो बहुत स्वार्थी हो चुका है.ऐसे में देश की स्थिति डांवाडोल है.धन और ऐश्वर्य के एक वर्ग विशेष के हाथों में ही रहने से बाकी जनता इस वर्ग के हाथों की कठपुतली बन कर रह गयी है.
वे हर उस काम को करने पर राज़ी-गैर राज़ी ,सीधे या सबकी देखा देखी मजबूर हो जाते हैं और कई बार ऐसे कामों को "फैशन',"चलन" या "संस्कृति" मान कर खुद को बेहद समझदार मानते हैं जिनमें इनका नैतिक पतन होता है.
मेरे और भावना(मेरी मुंह बोली बहन) के बीच अक्सर जो झड़पें होती हैं और जिस ख़राब दौर से हमारा रिश्ता इस वक़्त गुजर रहा है वह एक व्यक्तिगत मामला न रहकर भारत जैसे बड़े देश को बिगड़ते हालातों से बचाने के संघर्षों का एक बहुत छोटा रूप है.
भावना एक प्रतीक है देश के उन करोडो नौजवानों की जो पूंजीपति वर्ग की तान पर नाचते हुए एक इंसान से महज़ एक प्रोडक्ट में बदल चुके हैं.जिनके मन में देश-समाज-गरीबी-संघर्ष-इंसानियत जैसे शब्द कभी नहीं आते बल्कि नए से नए फैशन के जूते,कपड़े,पर्स,बाइक,कार,फ़्लैट आदि खरीदने की चाहत जोर मारती रहती है.इसी चाहत के चलते ये अपने आदर्श और नैतिकता को एक तरफ रख देते हैं.ये एक -एक दिन में अपने चरित्र को कई बार नीलाम करते हैं.इनके लिए हर दूसरा आदमी शो केस में रखे सामन की तरह होता है.वो इन्हें तब तक ही अच्छा लगता है जब तक वो आज के दिखावटी रंग में रंग हुआ हो.इनके लिए रिश्ता बनाना महज़ मार्केटिंग या नए माहोल में सुविधा पाने का एक जरिया मात्र है.हर नए माहोल के साथ ही पुराने रिश्ते डस्ट बिन में फेंक दिए जाते हैं.ये रिश्ते तभी तक रहते हैं जब तक वे लाभदायक रहें.
मथुरा जैसे छोटे शहरो में भी इस तरह के युवाओं की भरमार है पर मेट्रो शहरों में तो इसी तरह के युवा मिलते हैं.ये उसी तरह की जिंदगी जीते या जीने की चाहत रखते हैं जिसके लिए ये जरूरी है कि हर दस में से नौ इंसान कंगाल हों.
इतिहास गवाह है कि किसी भी देश का भविष्य इस बात पर निर्भर होता है कि उस देश के युवा अपने देश हित में कैसे विचार रखते हैं और उन विचारों के हकीकत में बदलने के लिए कितने सक्रिय होते हैं.ऐसे ही युवा जब अपने देश की बागडोर सँभालते हैं तो एक सुखी और संपन्न देश के निर्माण हेतु दोतरफा प्रयास शुरू हो जाते हैं.सरकार देश हित में प्रस्ताव पारित करती हैं और नागरिक उन पर अमल करते हैं.
जापान,चीन,रूस जैसे देश इस बात के गवाह और उदहारण हैं.
चीन को ही लें तो उसे हमसे २ साल बाद आज़ादी मिली और अब वह उत्पादन के मामले में विश्व का सिरमौर है तथा उसकी अर्थव्यवस्था दूसरे नंबर पे है.ये कोई चमत्कार नहीं है अपितु उन करोडो युवाओं से भरी जनता और बेहतरीन सरकारों के संयुक्त प्रयासों का नतीजा है जिन्होंने आर्थिक व धार्मिक समानता आने तक अपने निजी अरमानों को एक ओर रखा.निजी संपत्ति को जिन्होंने सार्वजनिक बनाने में ख़ुशी से सहयोग दिया.
चीन में एक दौर तो ऐसा भी आया कि जब देश में कारों के उत्पादन पर तब तक रोक लगा दी गई जब तक हर आम आदमी को साइकिल मुहैया न हो गई.इसी बदौलत विकास के मामले में हमसे कहीं आगे और अपराध के मामले में हमसे कहीं पीछे है चीन.
लेकिन हमारे देश में घर के रिश्तो से लेकर देश और नागरिकों के बीच भी अविश्वास और स्वार्थ अपनी जड़ जमा चुके हैं.हम हर क्षेत्र में वही कर रहे हैं जो पूंजीपति वर्ग हमसे करवा रहा है.मुफ्त में मिली आज़ादी को बहुत सस्ता मान कर मौज ले रहे हैं आज के युवा.
और इसीलिए जब में इनकी निहायत ही स्वार्थी और भ्रष्ट सोच को महसूस करता हूँ,सुबह से शाम तक खोखले लोगों से नकली प्यार और दोस्ती की बातों के नाम पर मोबाईल पर वल्गेरिटी करते देखता हूँ या महंगे मल्टीनेशनल प्रोडक्ट्स की चर्चाएँ करते सुनता हूँ तो मुझे लगता है की जैसे मेरे नानाजी के नाखून में कोई पिन घुसेड रहा है और वे दर्द से कराह रहे हैं,उनकी ऊँगली से खून के फव्वारे निकल रहे हैं और सांस्कृतिक,आर्थिक व धार्मिक कुचक्रों में फंसे युवा उनकी कराहों को तेज़ रैप म्युज़िक की आवाज़ में दबाते हुए दिल्ली या नॉएडा जैसे किसी शहर के किसी डिस्को बार में पूरी-पूरी रात ख़ुशी से नाच रहे हैं.

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

युवाओं की समस्या को युवा ही अच्छी तरह समझ सकते हैं और अभिव्यक्त कर सकते हैं। लिखना जारी रखो।
लिखना फिर आरंभ किया इस के लिए बधाई!
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